Wednesday, January 5, 2011

अगर ये न होते... (5th Jan 2010)



अगर ये न होते...
तो हमारी ज़िन्दगी कचरों तले होती
कचरा जो हमने चारो ओर बिकेरा है 
बिना सोचे-समझे , पढ़े-लिखे होने के बावजूद 

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अगर ये न होते...
ज़िन्दगी बस गन्दगी से भरी होती 
चारो ओर बिमारियों का जाल बिछा होता
हमारा स्वास्थ बद से बधतर होता 


अगर ये न होते...
लाख वैज्ञानिक व तकनिकी उपलब्दियों के बाद 
हमारा जीवन ख़तम हो गया होता 
और पृथ्वी बहुत पहले नष्ट हो गया होता

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अगर ये न होते...
तो ग्लोबल वार्मिंग का स्वांग रचा कर
भ्रष्ट नेताओ ने करोड़ों का घफ्ला न किया होता 
और स्विस बैंको में काला धन न छुपाया होता

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अगर ये न होते...
हम सब किसी कचरों के तले बैठे होते
और ग्लोबल वार्मिंग शब्दावली का आविष्कार न होता 
और न ही हर सक्श इन शब्दों से वाकिफ होता 


अगर ये न होते...
चारों ओर हाहाकार मचा होता 
पृथ्वी का वातावरण और दूषित हो गया होता
और जीना हम सबों का दूभर हो गया होता

नफरत भरी नज़रों से हमने इन्हें दुत्कारा है
न स्वास्थ चिकित्सा, शिक्षा, ना ही दो वक़्त की रोटी 
हमने मगर इनको अब तक दिया है क्या?
बस हमने तो इनकी जाति को नाकारा है 

पेट की भूख से ये कर्तव्यपरायण 
अपना कर्त्तव्य का पालन बिना अधिकार मांगे 
पृथ्वी से हमारी गन्दगी दूर कर रहे हैं
इन्हें तो ज्ञात भी नहीं है ग्लोबल वार्मिंग की 


अगर ये न होते...
तो क्या हमारा जीवन यूँ स्वस्थ होता?
अगर ये न होते...
तो क्या हमें सामाजिक पशु कोई कहता?
अगर ये न होते...
तो क्या इस विषय पर यूँ विचार प्रकट होता?

--- स्वरचित ---  

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