Wednesday, September 8, 2010

एक मुस्कुराता जहान (8th September 2010, 1420 Hrs)


हर माँ जिस तरह ममता से
अपने बच्चे को संभाल कर
अपने आगोश से लिपटा कर रखती है
ठीक उसी तरह...
ठीक उसी तरह
दर्द ने मेरी ज़िन्दगी को 
अपने आगोश में संभाल कर रखा है

मैं दूसरों का दर्द समझ सकूं,
एहसास कर सकूं
जैसे उनके दुःख अब मेरे हो चुके हो 
ये अनुभूति अचंबित करती है मुझे
दर्द से रिश्ता जोड़ कर
ज़िन्दगी ने हमेशा-हमेशा के लिए
मेरी आँखें खोल दी है

ज़िन्दगी का ये चौराहा
कुछ इतना व्यस्त है कि
हर तरफ बस भीड़ ही भीड़
नज़र आती है अश्रु छलकाते

कोई अपने नसीब को कोसता हुआ,
तो कोई रोटी के दो टुकड़े को लेकर,
कोई अपने बर्बादी का मातम मनाता हुआ
तो कोई अपने प्रेमी से रूठ जाने पर
हर कोई...
हर कोई बस यूँ ही 
आंसू बहाता हुआ मिलता है यहाँ 

हर एक की बस वही कहानी
हर एक का बस वही रोना
क्यों ज़िन्दगी इतनी बेरहम है?
क्यों ज़िन्दगी इतनी मतलबी है?
क्यों हर जगह बस रोना ही रोना लिखा है?

मैंने ज़िन्दगी के दौर में
बहुत ही देर में ये जाना
और समझा है
कि दर्द दूसरों का हो या फिर अपना
दर्द, दर्द है
और इसका आज मुझे एहसास है

जिस तरह मैं अपने दर्द का इलाज 
दूसरों कि मदद से हल्का कर पाता हूँ  
ठीक उसी तरह... 
ठीक उसी तरह 
अगर मैं किसी के काम आ सकूँ
किसी के अश्रु को रोक सकूँ बहने से
दुनिया में दर्द कम हो होगा ही होगा
और दर्द के उस चौराहे में...
दर्द के उस चौराहे में 
मुझे रोने कि नहीं बल्कि
हँसने कि आवाज़ सुनाई देगी
क्यूँकि मेरी ही तरह... 
क्यूँकि मेरी ही तरह 
हर एक, दूसरे के दर्द को 
अपना दर्द समझ कर 
आंसू को मुस्कराहट में बदल रहा है 
ख़ुशी की एक नयी लहर 
बहा रहा है 

क्या ऐसी ज़िन्दगी बेहतर नहीं है 
उस ज़िन्दगी से 
जहाँ हर कोई...
जहाँ हर कोई
एकांत में या किसी के कंधो पर 
बस अश्रु छलकाते हुए नज़र आतें है?

मैंने तो उन अश्रु भरे नैनो में 
एक नयी चमक देखी है
एक-एक चेहरा... 
एक-एक चेहरा 
मुस्कुरा कर...
मुस्कुरा कर 
बस यही कहता हुआ मिला

आओ हम सब मिलकर 
दुनिया को एक मुस्कुराता हुआ जहान बनाएं 

इस मुस्कुराते हुए चौराहे में 
आपका स्वागत और इंतजार है
क्या आप अभी भी उस चौराहे पर खड़े हैं

जहाँ सब अश्रु छलकाते हुए नज़र आते हैं?

८ सितम्बर २०१० 


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