Friday, September 3, 2010

सड़ता अनाज, अंग्रेज़ी शराब और हमारे नेता (3rd September 2010, 0920 Hrs)

किसान तो मरने के लिए जनम लेता है 
उसका भाग्य बस यही कहता है
कड़ी धुप हो या फिर जोरो की बारिश
अपने खेत पर वह खून के आंसू बहाता है


उसकी गरीबी उसके पसीने की कीमत है
उसका एक मात्र सहारा बस भगवन ही है
जिसने उसका भी साथ छोड़ दिया आज के दौर में
क्यूँकि भगवन आज कल वास करते हैं सिर्फ महलों में


अपने परिवार को भूखा रखकर भी
किसान अपने देशवासियों का पेट भरता है
अनाज मगर खुले में रखकर हमारे नेता उसे सडातें हैं
ताकि सड़े अनाज से अंग्रेज़ी शराब बन सके


५८००० करोड़ का अनाज सालाना सडाया जाता है
ताकि नेताओ के सुपुत्र करोड़ कमा सके बनाकर शराब
जिसे पांच सितारा में बहाया जाता है पानी की तरह 
चमचमाते हुए ग्लास्सों और पार्टियों में


यह विडम्बना नहीं, हकीकत है भारत की
मेरा प्यारा भारत, हम सब का भारत
क्यों हमने ऐसा होने दिया है मेरे दोस्तों
जब कभी खाना खाने बैटो, तब ज़रूर विचार करना इस पर


किसानो की विधवाहो वः बच्चो की कहानी रुला देती है
बस जी रहे हैं वे किसी तरह भूखे नंगी हालत में
क्यों, मैं पूछता हूँ आप सब लोगों से
आखिर हम कब जागेंगे अपनी नींद से?


कब हम सब मिलकर किसानो को 
उनका हक अदा करेंगे?
कब हम उनके मेहनत का सही भरपाई करेंगे? 
या फिर अपनी बंद आँखों से बस
सड़ता हुआ अनाज, अंग्रेज़ी शराब 
और नेताओ की झूठी बातें सुनकर
चुपचाप यूँ ही ज़िन्दगी गुजार देंगे?


३ सितम्बर २०१० 





















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