Sunday, September 12, 2010

ये कैसा दौड़ है ज़िन्दगी से? (12th September 2010, 1500 Hrs)

कोई दौड़ रहा है ट्रेन पकड़ने के लिए 
तो कोई दौड़ रहा है घर पहुँचने के लिए 
कोई दौड़ रहा है कहीं सिनेमा शुरू हो जाये
तो कोई दौड़ रहा है अपना काम पूरा करने के लिए 

हर कोई ज़िन्दगी में 
हर पल दौड़ता हुआ ही नज़र आता है मगर
क्या एक पल ठहर कर कभी किसी ने सोचा  
कि वह दौड़ तो रहा है, मगर क्यों?
किस चीज़ की जल्दी है?
किस की ओर वह दौड़ रहा है इतनी जल्दी-जल्दी?

क्या ये सब लोग जो हर पल
ज़िन्दगी में दौड़ते हुए नज़र आते हैं
इन्हें ज़िन्दगी से ज़रा भी लगाव नहीं है?
कुछ पल रुक कर 
ज़िन्दगी का लुफ्त नहीं भाता है इन्हें?
ज़िन्दगी के हसीन पल से दूर 
ये आखिर क्यों दौड़ रहे हैं?

मैंने कल ही ये निष्कर्ष निकला कि 
हर किसी को मौत से मिलने की अजीब सी बेचैनी है
इसी लिए तो ये सब मौत कि ओर जल्दी-जल्दी दौड़ रहे हैं...
दोस्तों मैं तो ज़िन्दगी के हसीन पलों का आनंद लेना चाहता हूँ
दौड़ना भी पड़े तो मैं चलता हूँ, थोडा रुकता हूँ
नज़ारा का आनंद लेते हुए आराम से चलता हूँ
मौत से मैं इतनी जल्दी क्यों मिलूं
जब इश्वर ने मुझे ज़िन्दगी इतनी हसीन दी है

जब अगली बार आपको दौड़ना पड़े
तो एक पल के लिए रुक कर
ये ज़रूर सोचना
कि आप मौत कि ओर दौड़ रहे हैं...
क्या ज़िन्दगी से ज्यादा
आपको मौत से इतना प्यार है?

११ सितम्बर २०१० 

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