Monday, August 30, 2010

एक नयी कहानी लिख रहा हूँ मैं... (30th August 2010, 1135 Hrs)

एक नयी कहानी लिख रहा हूँ मैं


एक नयी कहानी लिख रहा हूँ मैं
दुनियावालों की जबानी लिख रहा हूँ मैं
हर किसी को चाहिए बस थोडा सा प्यार
हर किसी को मिलता है पर दुखों की भरमार
है अजीब यह भी दुनिया की ऐसी रीत
एक नयी कहानी लिख रहा हूँ मैं...


यह नयी कहानी है बड़ी पुरानी
सदियों से चली आ रही है गरीबों की ग़ुलामी
चंद पैसेवालों के खातिर यह दुनिया है मेरे दोस्त
जो बचा कूचा है वह भी नोच डालते है गरीबों का गोस्त
एक नयी कहानी लिख रहा हूँ मैं...
दुनियावालों की जबानी लिख रहा हूँ मैं


नहीं है कोई ऐसा जो कह सके कभी
दुनिया में है वह सचमुच बहुत ही बहुत खुश
चाहे अगर उसे सारा दुनिया मिल भी जाये
फिर भी खलेगी जीवन को दे दुहाई
एक नयी कहानी लिख रहा हूँ मैं...
दुनियावालों की जबानी लिख रहा हूँ मैं


यह अनोखा सफ़र ख़तम हुआ न था कल
यह दर्द का सफ़र न होगा ख़तम आज भी
यह सिलसिला तो बस चलता ही रहेगा
अंजामे ज़िन्दगी ख़तम हो जाये भी तो क्या
एक नयी कहानी लिख रहा हूँ मैं...
दुनियावालों की जबानी लिख रहा हूँ मैं 


३० अगस्त २०१० 

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